कितना बदनसीब है Mahamaya Pangna का यह सिँहासन जिसकी सैकडो वर्षो तक सुकेत की राजधानी के रूप मे विख्यात पाँगणा के कलात्मक छ: मञ्जिले देवी कोट की छठी मञ्जिल मे पूजा अर्चना होती रही और आज सुन्दर नगर के राजमहल के कमरे ( तहखाने) मे बँद है और आम दर्शनार्थ पावँदी लग गयी।
लोकतांत्रात्मक एवँ धर्म निरपेक्ष भारत का एक धर्मनिष्ठ लोक समूह अपनी उपास्या देवी शक्ति महामाया जगदम्बा पाँगणा के दिव्य मातृमयी स्नेह को पाने के लिए महामाया मँदिर कमेटी के सँस्थापक प्रधान श्री मतिधर शर्मा जी अध्यक्षता मे पाँगणा वासियो सहित दिवँगत राजा ललित सेन जी से 15 जुलाई 1984 को देवी मँदिर परिसर मे निर्मित विश्राम गृह मे मिलकर सौहार्द पूर्ण बात हुई।
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Mahamaya Pangana ke Sihasan की अनसुनी कहानी
राजा ललित सेन जी ने बैठक मे पाँगणा वासियो की भावनाओं की इज्जत करते हुए सिँहासन को विद्वतजनो की राय के उपरांत यथाकथित निर्णय अनुसार लौटाने की सहमति जाहिर की। महामाया पाँगणा (Mahamaya Pangna) के सिँहासन को अपने पूर्व और मौलिक स्थान पर लाने के लिए Mahamaya mandir कमेटी के प्रधान श्री मतिधर शर्मा जी ने जनता के श्रद्धाभाव का प्रतिनिधित्व करते हुए 1984 से मई 1994 तक सुकेत के अँतिम राजा लक्ष्मण सेन के प्रपौत्र हरिसेन से निरँतर पत्र व्यवहार और पारस्परिक बैठकों के माध्यम से सम्पर्क बनाए रखा।
22 मार्च 1996 से 31 मार्च 1996 तक तत्कालीन Mahamaya temple कमेटी पाँगणा के प्रधान इन्द्रदत शर्मा/धर्मेन्द्र शर्मा के नेतृत्व मे Mahamaya Pangna का देवरथ सुँदरनगर के देवोत्सव मे देवलुओ के साथ शामिल हुआ। साँयकाल तक तो यह सिँहासन Mahamaya mandir बनौणी (Sunder Nagar) मे ही था लेकिन अगला दिन खुलने से पहले कहाँ चला गया कोई पता नहीं। ज्ञात्वय है कि अधिकतर सुँदरनगर वासियो ने भी यह अमूल्य सिँहासन नहीं देखा है। यहाँ तक कि इस सिँहासन को ट्रस्ट की सम्पत्ति दर्शाया जाता है।
यदि यह देव विग्रह ट्रस्ट की सम्पत्ति है तो आम दर्शनार्थ के स्थान पर यह देव विग्रह राज परिवार के कमरे मे बँद क्यों?
सदियों से पूज्य इस श्री विग्रह को तो आम दर्शनार्थ पूजा के लिए रखा जाना चाहिए।
तदोपराँत प्रजा और पूर्व शासक वर्ग के बीच देवी सिँहासन को मूल स्थान पाँगणा लाने पर कोई ठोस उन्नति न हो सकी आज वास्तव मे स्थिति यह है कि पाँगणा के देवी भक्तों ने सुकेत रियासत के शासको की एकमात्र कलात्मक विरासत छ: मञ्जिले महामाया (बेहड़ॆ वाड़ी माता) के मँदिर का राज परिवार के किसी भी प्रकार के सहयोग के बगैर जीर्णोद्धार किया ।
जन सहयोग से देवी के रथ , मैहरो (मुखौटो) ढोल , नगारो, अन्य साज-बाज का निर्माण कर अपनी मातृ श्रद्धा का ज्वलंत प्रमाण दिया। राज परिवार से ही जुड़ी “हत्या माता” की पूजा अर्चना जहाँ राजसी काल से जुड़े पुजारी कर रहे हैँ वही महामाया मँदिर मे प्रबंधकिय कार्यों के लिए कमेटी का गठन किया गया है।
इसके अतिरिक्त महामाया की पूजा- अर्चना राजसी काल की समारोह परक मर्यादाओ का वहन पूर्ववत किया जा रहा है। जिस स्थान पर यह सिँहासन स्थापित था वहाँ लगभग साढ़े तीन दशक तक उस पटड़े की ही पूजा होती रही जिस पटड़े पर यह सिँहासन प्रतिष्ठापित था। आज इस स्थान पर शिव पार्वती, मुखौटो के श्री विग्रह के साथ सिँहासन का विशाल चित्र, सिँहासनी गुग्गा जी पूज्य हैँ। परमात्मा की करूणा और भक्तों की भक्ति के दिव्य सहयोग मे मानव जनित व्यवधान सुकेत ही नही भारतीय इतिहास की एक अपूर्व घटना है।