ऋषि शुकदेव, थट्टा मइघयाल

Naman

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Rishi Shukdev, Thatta Maighyal

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जिला मुख्यालय मंडी से लगभग 45 कि.मी. दूर गाँव वक्ष, डाकघर देऊरी में ऋषि शुकदेव जी का मंदिर स्थित है।

History of Rishi Shukdev Thatta

जनश्रुति के अनुसार थट्टा गाँव में छनेट, बिष्ट, डंठी, जगेटू, खलेडू, डवराणा, दसेलरू, स्नेडा आदि परिवार रहते थे। एक दिन गाँव के कुछ लोग घूमने निकल गए और जब वापिस आ रहे थे तो हणोगी में ब्यास नदी से अजीब स्त्री की आवाज सुनाई दी। थोड़ी देर चलने पर छनेट परिवार के व्यक्ति के करंडू में कुछ वजन महसूस हुआ। जब उसने करंडू का ढक्कन खोला तो उसमें एक पत्थर की पिंडी थी। जब उन्होंने उसे फेंका तो वो दोबारा करंडू में आ गई। इसी तरह दो बार फेंकने व दो बार करंडू में आने पर जब तीसरी बार फेंका तो उन व्यक्तियों को दिन में अंधेरा दिखाई देने लगा। उन्हें आत्मज्ञान हो गया कि ये कोई साधारण पिंडी नहीं है बल्कि भगवान का चमत्कार है।

उन्होंने पिंडी से माफी मांगी और वे पिंडी को लेकर हणोगी, खोती नाला, बौरू होते हुए घाट पहुंचे और वहां थोड़ा आराम करने के ● लिए करंडू को घर के ऊंचे तोरडू पर टांग दिया। कहा जाता है कि यह तोरडू आज भी मौजूद है। घर पहुँचने पर उन्होंने पिंडी को तीसरी मंजिल पर रख दिया। फिर वही पिंडी शरोगी नामक स्थान पर प्रकट हुई।

एक अन्य गाथा के अनुसार बिष्ट परिवार की एक औरत की गाय प्रतिदिन 3 से 4 बजे अपने आप रस्सी से खुल जाती और कही चली जाती तथा 5 से 6 बजे वापिस आ जाती। औरत ने यह बात घर और गाँव वालों को बताई। लोगों ने गाय का पीछ किया तो देखा कि गाय प्रातः अपने आप खूंटे से खुल कर शरोगी पहुंची। वहां अपनी पूंछ से झाडू लगाया, फिर गौमूत्र किया तथा पिंडी के ऊपर दूध की धार की। कहते हैं कि जब बच्चे पशुओं को जंगल में चराने ले जाते तो वह गाय शरोगी होते हुए आती थी। जब बच्चों को इस बात पर डांट पड़ी तो उस समय एक बच्चे को खेल आई। शुकदेव जी महाराज प्रकट हुए और कहा यह सारा मेरा खेल है। मैं चाहता हूँ कि मेरा मंदिर यहीं बनाया जाए। इस पर लोगों द्वारा इसी स्थान पर पैगोडा शैली में देवता का भव्य मन्दिर बनाया गया।

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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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