हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां एक गांव के लोग हर रोज दर्शन करते हैं और दूसरे गांव के लोग वहां जाने से भी डरते हैं। Hatya Devi Temple कोई और नहीं सुकेत राज्य की राजकुमारी हैं। हां आप लोग ठीक समझ रहे हैं सुकेत के राजा वही राजा है जिन की कुलदेवी मां कामाक्षा है जिसके बारे मे मैं आपको पहले बता चुका हूं। एक समय में सुंदर नगर का नाम सुकेत हुआ करता था।
वही सुंदर नगर जिसको आजकल आप मंडी जिले की तहसील के रूप में जानते हो। प्राचीन काल में सुकेत रियासत की राजधानी का नाम बनेड था और उसके बाद उसको महाराजा लक्ष्मण सेन के द्वारा उसका नया नाम बनेड से बदलकर सुंदर नगर रख दिया था । परंतु सुकेत के राजा की सबसे प्राचीन राजधानी पांगड़ा थी और अंतिम सुंदरनगर थी ।
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History of Hatya Devi
मंडी जिले का फॉर्मल नाम मनदेव नगर है। एक समय में यह जिला सुकेत नाम का राज्य था। इस राज्य के राजा थे महाराज रामसेन। राज्य की राजकुमारी और राजा रामसेन की बेटी चंद्रावती अक्सर महल के प्रांगण में अपनी सखियों के साथ खेला करती थीं। सर्दियों के मौसम में एक बार राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ महल में खेल रहीं थी। उनकी एक सहेली ने पुरुष का वेष बनाया और बाकी सहेलियां अठखेलियां करने लगीं। तभी राज्य के पुरोहित जी वहां से गुजरे।
इस दौरान उनकी नजर लड़के का वेष धारण की हुई लड़की पर पड़ी और वह उसे वाकई पुरुष समझ बैठे। उन्होंने जाकर राजा से राजकुमारी की शिकायत कर दी। इस पर राजा क्रोधित हो गए और उन्होंने राजकुमारी को तुरंत अपनी शीतकालीन राजधानी पांगणा भेज दिया। खुद पर लगे आरोप और अपनी बात रखने का अवसर न मिलने के कारण राजकुमारी बहुत दुखी थीं। उन्होंने विषैले बीज खाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। उसी रात वह अपने पिता राजा रामसेन के सपने में आईं और बोलीं ‘मेरे मृत शरीर को महामाया देवी कोट मंदिर पांगणा के परिसर में गाढ़ देना।
Princess Became a Goddess of Vengeance
फिर 6 महीने बाद खुदाई करके मेरे शरीर को वापस निकालना, अगर मैं पवित्र हूं तो मेरा शरीर पूरी तरह सुरक्षित रहेगा और अगर मैं पवित्र नहीं हूं तो मेरा शरीर सड़ जाएगा। यदि शरीर सुरक्षित रहे तो आप इसका विधि-विधान से अंतिम संस्कार चंदपुर में करना।’ सपना पूरा होते ही राजा की घबराहट में आंख खुल गई। उन्होंने तुरंत सैनिकों को भेजकर पुरोहितजी और राज्य के अन्य ज्योतिषियों को बुलाया।
राजा ने उन्हें अपने सपने के बारे में बताया। इस पर सभी ने राजा को सलाह दी कि वह तुरंत पांगणा के लिए प्रस्थान करें। वहां पहुंचने पर राजा को सूचना मिली की राजकुमारी ने विषैले बीच खाकर आत्महत्या कर ली है। आज आज भी पत्थर शीला Mahamaya mandir में आपको देखने के लिए मिलेगा शिशिला में राजकुमारी ने जहर पिसा हुआ था।
यह खबर सुनकर राजा बहुत दुखी हुए। लेकिन अपनी पुत्री की इच्छानुसार उन्होंने राजकुमारी का शव Mahamaya mandir परिसर में ही दफना दिया। फिर 6 महीने बाद जब राजकुमारी के शव को फिर से निकाला गया तो वह पूरी तरह सुरक्षित था। राजा बहुत दुखी हुए और अपनी भूल पर पश्चताप करने लगे। गलत सूचना देने के कारण उन्होंने पुरोहित को राज्य से बाहर कर ऐसी जगह भेज दिया जहां पानी और खाने की चीजों का अभाव था।
राजकुमारी की इच्छानुसार उनका अंतिम संस्कार पांगणा के समीप चंदपुर में कर दिया गया। इस स्थान पर शिव-पार्वती का मंदिर बना दिया गया और शिवलिंग की स्थापना की गई। आज इस मंदिर को दक्षिणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। लेकिन राजकुमारी पर शक करने के दुख के चलते राजा अपराधबोध से पूरी तरह घिर गए और दुखी रहने लगे। इस कारण कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
Why Are Brahmins Afraid to Visit This Temple?
राजा ने पुरोहित को सजा के तौर पर चुराग नामक जगह पर भेजा था। उस समय इस जगह पर रहने और खाने की उचित व्यवस्था नहीं थी। पुरोहित के वंशज आज भी इस क्षेत्र में रहते हैं। देवी के कोप से डरकर आज तक ये लोग Mahamaya devi temple परिसर में प्रवेश नहीं करते। इन्हें डर है कि कहीं इनके पूर्वजों की गलती की सजा इन्हें न भुगतनी पड़े। पांगणा स्थित महामाया देवी कोट मंदिर परिसर में जिस स्थान पर राजकुमारी का शव गाड़ा गया था, उस स्थान पर उनकी याद में एक कक्ष का निर्माण कराया गया था और तभी से यहां राजकुमारी की पूजा Hatya Devi के रूप में होती है।
आजकल यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में Hatya Devi के नाम से प्रसिद्ध है। इसलिए मंदिर में जाने से डरते हैं गौतम गोत्र ब्राह्मण के वंशज । मंदिर में आनेवाले श्रद्धालु Hatya Devi की पूजा-अर्चना करते हैं। यह मंदिर साल में कुछ विशेष अवसरों पर ही खोला जाता है। सुकेत राजवंश और गांव के लोगों की Hatya Devi में विशेष आस्था है ।