देवता नारायण का मंदिर गांव खांदला में स्थित है। इस स्थान तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय मंडी से लगभग 70 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।
History of Dev Shri Khandala Ka Narayan
देवता बहुत प्राचीन और रियासतकालीन माने गए हैं। लोक गाथाओं के अनुसार देव खांदला नारायण ने दयार गांव से आ कर कोट खमराधा को अपना स्थान चुना और आज तक वहीं पर विराजमान हैं। लोगों की देवता के प्रति अटूट आस्था है। महाशिवरात्रि में देवता किसी कारणवश लम्बे समय से नहीं आ पा रहे हैं।
श्री हरि लक्ष्मी नारायण जी प्रभु की गणी-भार्था के अनुसार प्रभु गांव दियार से अलग-अलग जगह ठांऊ लगाते, तरह- तरह के खेल खेलते अन्त में ज्वालापुर में पधारे और इसे अपना स्थाई धाम बनाया। प्रभु नारायण इस क्षेत्र में जब पधारे ,उस वक्त ये क्षेत्र देव-विहीन हुआ करता था। इन्होंने ही घाटी में पधार कर अन्य देवताओं के लिए आगमन के द्वार खोल दिए। कालांतर में अन्य देवी-देवता भी घाटी में पधारे और इस मनोरम घाटी को आज बड़ी शान से ‘ठारा करडु रा गढ़’ कहा जा सकता है।
प्रभु नारायण जी को स्थानीय देव समाज के पूरे दायरे में ‘ज्येष्ठ नारायण’ के रूप में पूजा जाता है और प्रभु जब महर्षि पराशर के दरबार में सजने वाले ‘सौरा-नाहुली’ मेले में शिरकत करते है, तो प्रभु को आदर स्वरूप मन्दिर में धूरे छोर पर स्थान दिया जाता है। प्रभु नारायण को पराशर झील के निकासी द्वारों का स्वामी माना जाता है और जब भी क्षेत्र में किसी कारणवश सूखे जैसे हालात हो जाते हैं, तो प्रभु पराशर पधार कर बारिश से क्षेत्र की प्यास अवश्य बुझाते हैं ।
दियारा न एजीया केरू कोट बौसणा, सत्ते सैणा जेठा गूण परकार
ज़गा नाहुली धूरी, केरा मना री पूरी, बले मुल्ख सारा जयजयकार
अनुवाद
दियार से निकल प्रभु कोट में बसे, सत्त-तप के धनी आप श्रेष्ठ गुणों के स्वामी है
मेला पराशर में आपको धूरा स्थान प्राप्त है, और हर ओर जयकार की गूंजती मधुर वाणी है