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History of Dev Bala Tikka Shilhi Latogali Suket
लटोगली गांव में एक पेड़ के नीचे गाय प्रतिदिन दूध देने जाती थी। गाय के प्रतिदिन ऐसा करने पर घर वालों द्वारा इसकी छानबीन करने के उपरांत लोगों द्वारा उस पेड़ को काट दिया गया। पेड़ के कटने पर पेड़ से खून निकला और आवाज आई कि मैं देव बाला टिक्का हूं और इस पेड़ में मेरा निवास स्थान है, जिसे तुमने काट दिया है। उसी समय खून तूराड़ी जगह पर हल चलाते वक्त देवता को मुख जमीन से निकला, उसके उपरांत स्थानीय लोगों ने पेड़ वाले स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करना शुरू किया, परंतु वह बन नहीं पा रहा था।
कुछ दिनों उपरांत मकड़ी ने मंदिर वाले स्थान पर मंदिर का नक्शा बनाया, उस नक्शे के मुताबिक मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर प्रतिष्ठा के समय सेलणू गांव के पंडित ने तरजुगी तोगड़े के रास निकाली और देवता को बालाटिक्का के नाम से प्रतिष्ठित किया गया। देवता के पास केवल सिलणू गांव के चुरढ़ी टोली को ही पूजा करने के आदेश हैं। यह देवता कंडू के रूप में स्थापित था, परंतु अब यह देवता रथ के रूप स्थापित किया गया है। यह देवता बारिस व मौसम साफ करने के लिए जाने जाते हैं।