देवता का मंदिर कटौला के समीप गांव टिहरी में स्थित है। वहां तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से 35 किलोमीटर तथा पैदल सफर 5 किलोमीटर तय करना पड़ता है।
History of Adi dev Bhrama
श्री देव आदि ब्रम्हा की उत्पत्ति प्राचीनतम मानी गयी है जिसके बारे में गाथाओं में ही उल्लेख मिलता है। बुजुर्गों के अनुसार देवता एक 6 माह की कन्या को उस समय मिला था जब उसके माता-पिता खेत में काम कर रहे थे। बच्ची खेत में खेल रही थी और उसके हाथ में एक खिलनी थी। खेलते-खेलते खिलनी में जमीन से एक मोहरा आ गया जो श्री देव आदि ब्रम्हा जी का था। आज भी उस मोहरे के सिर में खिलनी का छेद है जो कि रथ में विराजमान हैं। जहां मोहरा प्रकट हुआ, वहां पर पंडितों का गांव था। इस गांव में 60 परिवार रहते थे।
किंवदंती के अनुसार बहुत अरसा पूर्व मंडी निवासी एक भयंकर बिमारी के शिकार हो गए थे। उस समय मंडी की रक्षा का जिम्मा श्री देव आदि ब्रम्हा ने संभाला और एक बकरा साथ लेकर मंडी की परिक्रमा सेरी मंच से आरंभ करके पूरे नगर से होकर सेरी मंच पर इसका समापन किया। इसके पश्चात लोगों को बिमारी से छुटकारा मिल गया। तब से लेकर आज तक महाशिवरात्रि के दौरान यह परिक्रमा मंडावासियों की सुख समृद्धि के लिए देवता द्वारा की जाती है।