Bala Kameswar Sayri Temple mandi

By Sanya bhardwaj

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image of dev shree bala kameswar sayri

देवता बालाकामेश्वर(Bala Kameswar Sayri) का मूल स्थान गांव सायरी में है और कोठी/भण्डार मझवाड़ गांव में है। देवता के मन्दिर तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से 10 कि० मी० सड़क व 100 मीटर के पैदल पक्के रास्ते की दूरी तय करके पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने पर प्रकृति की अनोखी छटा व देवमय वातावरण स्वर्ग सी अनुभूति करवाता है।

बस्ती से दूर नैसर्गिक छटा में यहां देवता बालाकामेश्वर सायरी का भव्य मन्दिर है। मन्दिर में Dev bala kameswar Sayri की पिण्डी ज्योति स्वरूप में काफी बड़े आकार की है। ऐसा लगता है जैसे पिण्डी किसी विशेष पत्थर से की बनी हुई है और इसका आकार प्राकृतिक प्रतीत होता है। देवता बहुत ही प्राचीन है।

History of bala kameswar Sayri in hindi

बुजुर्गो के अनुसार दन्त कथा है कि Dev bala kameswar Sayri गांव के ग्वालों के साथ बालक रूप में पशु चराया करता था। वह दिन को उनके साथ खेलता, पशु चराता तथा सायंकाल लुप्त हो जाया करता था। यह घटना देवता के मूल स्थान सायरी गांव में घटित हुई। कालांतर में वहां पर ज्योतिस्वरूप पत्थर की एक पिण्डी प्रकट हुई।

यह घटना 600 से 800 वर्ष पूर्व की ही दो ब्राह्मण परिवार रहते थे, जो लगभग साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व वहां आये थे। मानी गयी है। इस मन्दिर के साथ कालांतर में इर्द-गिर्द के लोग देवता के चमत्कारों से प्रभावित हुए और सबने इसे अपना ईष्ट देवता मान लिया। तब से लेकर आज तक देवता की मान्यता बनी हुई है।

रियासत काल में भी विभिन्न राजाओं ने मण्डी बुलाकर राजदरबार में, बीमारी की रोकथाम, युद्ध में विजय, पशुओं की बिमारी व वर्षा लाने हेतु कई बार देवता की अनुकम्पा प्राप्त की और समय-समय पर देवता को जमीन के रूप में शासन प्रदान किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांच सौ वर्ष पहले राजा तथा हरयानों द्वारा देवता का रथ बनाया गया।

Dev bala kameswar Sayri के मूल स्थान के अतिरिक्त, एक देहरा चिलकटोरा मझवाड़, दूसरा गांव बगला बल्ह एवं तीसरा मन्दिर गांव स्योहली डडौर बल्ह में है। देवता का भण्डार गांव मझवाड़ में स्थित है। देवता के मूल स्थान के पास एक सर (छोटी झील) तथा नाग देवता का मन्दिर है। इसके साथ ही पाताल देवता का मन्दिर भी है। ये सभी देवता बालाकामेश्वर से ही सम्बन्धित हैं।

Fair & Festival

Dev bala kameswar Sayri का एक मेला सायर त्यौहार के साथ मनाया जाता है। जो दो दिवसीय मेला होता है। इसके अतिरिक्त दीवाली का मेला मझवाड़ में तथा जेष्ठ माह में बल्ह के स्योहली, भंगरोटू, नागवला तथा बगला में भी मेले मनाये जाते हैं जिनकी परम्परा रियासत काल से चली आ रही है।

Final words

Dev bala kameswar Sayri की चार हारियां सायरी- मझवाड़, चभुआं, कीपड़ तथा बल्ह के स्योहली, भंगरोटू, नागचला, बगला – बडसू हैं। देवता की जाग चैत्र माह की संक्रांति को मनाई जाती है। जिसमें सभी हारियां इसमें भाग लेती है।

Source: Dev Gatha mandi shivratvi 2018

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