Sumitra Mahamaya Sunder Nagar

देवभूमि हिमाचल में अनेक देवी देवताओं के मंदिर पुरातन शैली में बने हैं। जिसकी काष्ठ कला किसी को भी हैरत में डाल देती है। परंतु सुमित्रा श्री महामाया (महिषासुर मर्दिनी ) मंदिर जो जिला मंडी के सुंदरनगर क्षेत्र जिसे पहले सुकेत रियासत के नाम से जाना जाता था में स्थित है। यह मंदिर काष्ठ कला पूर्ण तो नहीं मुगल शैली का है जो हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मंदिर सुकेत राज्य के अंतिम शासक महाराजा लक्ष्मण सेन जिनका शासन सन 1919 से प्रारंभ होकर 1948 में राज्य के भारत संघ में विलय होते रहा है। कहते हैं कि विवाह के कई वर्षों तक इनके संतान नहीं हुई, तो यह अपनी वंश वेल की समाप्ति से चिंतित रहने लगे। एक दिन स्वप्न में महामाया देवी ने दर्शन दिए और राजा को कहा कि तुम्हारे पूर्वज प्रारंभ से ही मेरे उपासक रहे हैं। सुकेत राज्य की प्राचीन राजधानी पांगणा में मेरी विधिवत पूजा होती रही है। अब इस में अनियमितता आ गई है। तुम मेरी पूजा आराधना की नियमपूर्वक व्यवस्था करो। परिणाम में शीघ्र ही तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।

देवी मां के आदेश मिलने पर महाराज लक्ष्मण सेन ने अपने महल के समीप देहरी नामक सुरम्य स्थल में महामाया देवी का आधुनिक स्वरूप में प्राचीन शिखर शैली के अनुरूप भव्य मंदिर बनाया, जिसमें आधुनिक नवीनता के साथ साथ मुगल कालीन शैली का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। महामाया के इस वृहद् मंदिर में पांच अवांतर मंदिर बनाए ए है, जिसमें मध्य का मंदिर महामाया का स्वरूप महिषासुरमर्दिनी दुर्गा भगवती के भव्य संगमरमर मूर्ति के रूप में दर्शाया गया है। इस मंदिर की दांई ओर शिव गौरा का मंदिर है और इसके साथ ही अखंड ज्योति का कक्ष है, जिसमें महामाया की सेवा में सरसों के तेल का का दीपक निरंतर जलता रहता है। दूसरे भाग में महामाया का शयन कक्ष है, जिसमें देवी की शैय्या है। यहां महामाया रात्री को शयन करती है। कभी कवार सजी संवरी शैय्या पर प्रात: काल सिलवटें पडी हुई होती है, जिससे यहां शयन करने का आभास होता है।

महामाया मंदिर के दांई ओर शेषशायी विष्णु भगवान के चरण दवाते मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है। भगवान विष्णु के मंदिर के साथ वाईं ओर को गुरूग्रंथ साहिब का कक्ष है। यहां सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रन्थ का नित्य प्रकाश होता है। महामाया के मुख्य दरबाजे के समीप केसरी नंदन हनुमान जी का मंदिर है। मुख्य मंदिर के पृष्ठ भाग में भगवान दतात्रेय जी का मंदिर है। इस प्रकार से महामाया का यह मंदिर समन्वयात्मक देव संस्कृति का एक आदर्श पवित्र स्थल बन पड़ा है, परंतु जनमानस में इसे महामाया मंदिर के रूप में जाना जाता । इस मंदिर में देवी की प्राण प्रतिष्ठा विक्रमी संवत् 1991 के माघ मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को हुई। जनश्रुति है कि राजा ने जब महामाया मंदिर निर्माण का संकल्प लिया, इसके कुछ ही समय पष्चात राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। प्रथम पुत्र के रूप में महाराज ललित सेन जी पैदा हुए इस तरह महाराज लक्ष्मण सेन जी के पांच पुत्र और दो पुत्रियों को जन्म दिया, जिस से कृतकृत्य होकर महामाया की प्रधानता में राजा ने सर्वधर्म समभाव की भावना को आलोकित करने वाले इस आदर्श मंदिर को बनवाया।

महामाया का यह मंदिर स्थल चील-सरूओं, अन्य फलदार व अन्य वृक्षों के बीच शोभायमान है। इस कारण से इस स्थान को सुंदरवन के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान अपने आप तो सुंदर है ही, इसके साथ-साथ इसकी अवस्थिति ऐसी है कि यहां से दूर-दूर तक सुंदरनगर के सममतल तथा पहाडी भू-भाग का सौंदर्य दर्शन किया जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सुंदर नगर के ललित नगर स्थान से यहां तक की दूरी लगभग दो किलोमीटर है। महामाया क्षेत्र का प्राचीन नाम बनौण था। यहां बहुत पहले बान के वृक्ष का सघन वन था, इसलिए इसे लोग बनौण कहते थे। आज भी पुराने बुजुर्ग इस स्थान को बनौण कहते हैं। इसी स्थान के आधार पर लोगों में भगवती महामाया के लिए बनौणी महामाया नाम का व्यवहार प्रचलित है

महिषासुरमर्दिनी महामाया के प्रति सुंदरनगर क्षेत्र के अलावा अनेक राज्य में अगाध श्रद्धा है। पर्व त्यौहारों के अवसर पर तथा घर पर कोई भी शुभ कार्य के होने पर लोग महामाया के चरणों में हलवा, पूरी बाबरू आदि पकवानों का भोग लगााते है। जब तो किसी के घर में महामाया की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तो लोग ढोल-नगाडों सहित आकर मां के चरणों में अपना शिश झुकातें हैं और रात भर महामायी का गुण गान करके पुत्र की चिरायु के लिए प्रार्थना करते हैं। सिक्ख समाज भी गुरू-ग्रंथ साहिब का पाठ करता है। चैत्र नवरात्रों के मध्य सुन्दरनगर में महामाया के नाम से मेला लगता है कहते हैं कि महाराज लक्ष्मण सेन जी के प्रथम पुत्र का जन्म चैत्र नवरात्रों की पंचमी तिथि को हुआ था जिस कारण पंचमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें सुंदरनगर तथा करसोग के लगभग 150 देवी-देवता सम्मिलित होते हैं। नवमी को मुख्य मेला होता है इस दिन सभी देवी देवता आदि शक्ति श्री महामाया के चरणों में शीश नवा कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। तदोपरांत सभी देवी-देवता राजमहल में जाकर राजपरिवार को आशिर्वाद देते हैं। राज परिवार के सभी सदस्य देवी-देवताओं का स्वागत पूजन करके चदर, मिष्ठान और दक्षिणा आदि अर्पण करते हैं। उसके उपरांत सभी देवी देवता सुंदरनगर शहर की परिक्रमा करते हैं उस समय यहां पर्वतीय वाद्य-यंत्रों नरसिंगा, करनाल, ढोल, शहनाई एवं नगारों की धुनें बजती हैं तो सारा क्षेत्र संगीतमय हो जाता है। ऐसे आलौकिक देवमय वातावरण में ऐसा लगता है कि यहां देवता एवं मनुष्य के साथ कण-क्षण शक्ति आराधना में निमग्न होकर अभिव्यक्ति दे रहा है। अन्त में मेला स्थल में एकत्रित होकर लोगों को आर्षिवाद देकर अपने-अपने स्थान की ओर प्रस्थान करतें हैं। प्राचिन समय में महामाया मंदिर में तोता, शेर और एक कुत्ता हुआ करते थे। कहते है कि तोता प्रतिदिन भोग के लिए नया फल लेकर आता था और कुत्ता राजमहल से फूल की टोकरी अपने मुंह से उठाकर पूजा के लिए मंदिर लाता था तथा शेर प्रतिदिन  प्रात: व सायंकाल की पूजा के समय मां की मूर्ति के समक्ष बैठता था। तीनों के मरणोपरांत समाधियों का निर्माण किया कुत्ते की कवर ललित नगर में बनाई गई, तोते की व शेर की कवर को महामाया मंदिर के समीप बनाया गया। मंदिर के समीप प्राचिन समय में एक धुन्ना जलता था आज यह मात्र समृति बन कर रह गई। मंदिर के आंगन में चम्पा का व मौलसरी के वृक्ष है जो सदा हरे-भरे रहते हैं और फूलों से सदा सुगंध चली रहती है और वातावरण को शुद्ध बनाए रखता है।

सुंदरनगर के पर्यटन एवं दर्शनीय स्थलों में सुमित्रा श्री महामाया मंदिर अत्यंत मनोरम एवं प्रसिद्ध स्थल है मंदिर की शोभायमान मूर्तियां मुख्य द्वार के उपर दो गुम्मद, मुख्य द्वार के अंदर एक विशाल आंगन और आंगन के मध्य भाग में एक फुव्वारा तथा मौलसरी का वृक्ष जो सदा हरा-भरा रहता है और सदैव सुगंध से युक्त रहता है जो यहां की शोभा को चार चांद लगा देते हैं। किसी भी भक्त नें अगर एक बार मां के दर्शन कर लिए उसका मन बार आने को करता है जो यहां की खास बात हैै।

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