The Legend of Parashar Lake in Mandi

ऐसी अद्भुत दूसरी झील है जिला मंडी के पराशर में 5 जून से यहाँ दो दिवसीय सरानाहुली मेला लगता है। इसे “पराशर” या ‘पड़ासर‘ भी कहते हैं। पौराणिक पराशर Parashar Lake, जो क्षमाशील वशिष्ठ के पौत्र और मुनि शक्ति के पुत्र थे। कहते हैं, उन्होंने गर्भ में ही सौ पुत्रों की मृत्यु से संतप्त वशिष्ठ को जीवन जीने की प्रेरणा दी। महाभारत में प्रसंग है :

“ उस बालक ने गर्भ में आकर परासुः अर्थात्‌ मरने की इच्छा वाले वशिष्ठ जी को पुनः जीवित रहने के लिए प्रोत्साहित किया था, इसीलिए वे लोक में ‘पराशर‘ के नाम से विख्यात हुए। ”

पराशर झील Parashar Lake शिमला से 58 किलोमीटर व चंडीगढ़ से 304 किलोमीटर दूर मंडी के उत्तर-पूर्व में लगभग 9000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। Parashar Lake तक पहुँचने के लिए पहला और सुगम मार्ग कटौला-बागी मार्ग है। मंडी-बागी तक सड़क है और बस सुलभ है। इससे आगे जोंकों से भरा आठ किलोमीटर पैदल मार्ग है। जुराबों में जोंकें समाने से बचना हो तो जीप योग्य सड़क से भी जाया जा सकता है। दूसरा मार्ग, राष्ट्रीय मार्ग पर पंडोह झील से सनोर-बदार होकर है। तीसरा मार्ग हणोगी माता मंदिर से वान्हदी होकर है। बान्हदी में ही देवता पराशर का भंडार है। सी भंडार में देवता के मोहरे (मास्क) रखे रहते हैं। भंडार में देवता के तीन चांदी के घोड़े भी हैं। एक अन्य मार्ग हणोगी से आगे पनारसा से है। कुल्लू की ओर से आने वाले यात्री बजौरा से कंढी होते हुए आते हैं। मंदिर और झील के समीप साधारण सराय और वन विभाग का एक विश्रामगृह भी है।

Shri Parashar Rishi Temple sarovar
Legend of Parashar Lake in Mandi

झील के साथ पराशर ऋषि का पैगोडा शैली का तिमंजिला मंदिर है। मनाली का हिडिंबा मंदिर, दयार (कुल्लू) का त्रिजुगी नारायण व कुल्लू का पराशर मंदिर और मंडी का यह पराशर मंदिर पैगोडा शैली के गिने-चुने मंदिर हैं। ठीक इसी तरह का ऋषि मंदिर है।

कुल्लू के कमांद में, जहाँ एक झील भी है, किंतु छोटे आकार की। उस मंदिर में भी अद्भुत काष्ठकला का उत्कीर्ण हुआ।

पराशर का यह काष्ठ मंदिर तेरहवीं या चौदहवीं शताब्दी में मंडी के राजा बाणसेन द्वारा बनवाया गया। मंदिर के द्वार पर की गई लकड़ी की नक्काशी ध्यान आकर्षित करती है। मंदिर के भीतर ऋषि की पिंडी के अतिरिक्त ऋषि की भव्य पाषाण प्रतिमा और विष्णुशिव व महिषासुरमर्दिनी की पाषाण प्रतिमाएँ हैं।

शिखर पर लगभग डेढ़ किलोमीटर कटोरीनुमा पहाड़ी के ठीक बीच में है झील, जिसके एक किनारे है अर्द्धचंद्राकार भूखंड | यह भूखंड धीमी गति से चलता है। स्थानीय पुजारियों के अनुसार यह पहले इधर से उधर चलता था, अब कुछ वर्षों से कोने में स्थिर हो गया है। झील की गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। किंवदंती है कि मंडी के एक शासक ने झील की गहराई मापनी चाही। आसपास के क्षेत्र से सब रस्सियाँ इकट्ठी कर बाँधी गईं और सिरे में लोहे का ‘घण’। रस्सियाँ कम पड़ गईं, किंतु गहराई मापी न जा सकी।

जब महर्षि पराशर अध्यात्म-चिंतन के लिए एकांत स्थान की खोज में थे तो इस स्थान को उपयुक्त पाकर उन्होंने भूमि पर गुर्ज से प्रहार किया | भूमि से जल की धारा फूटी, जिससे यह सुंदर झील बन गई। झील के किनारे ऋषि समाधिस्थ हो गए।

Shri Parashar Rishi Temple beautiful nature
Legend of Parashar Lake in Mandi

इस अनुपम स्थल तक पहुँचने के लिए भिन्‍न-भिन्‍न ऋतुओं में समागम दिवस निश्चित हुए। ऋषि के जन्मदिवस पर भादों के शुक्ल पक्ष की पंचमी को एक मेला लगता है। इस अवसर पर बान्हदी स्थित भंडार से ऋषि का रथ सजाकर मेले में लाया जाता है। आसपास के देवता मेले में खुशी मनाने आते हैं। आषाढ़ की संक्रांति को ‘सरानाहुली’ नाम का मेला लगता है। यह एक बड़ा मेला है, जिसमें सनोर, बदार, उत्तरसाल, सिराज के लगभग तीस देवता आते हैं। मेले में मंडी व कुल्लू क्षेत्र के श्रद्धालु समान रूप से भाग लेने आते हैं। एक अन्य मेला वैशाख में लगता है जब आसपास की देवियाँ यहाँ पधारती हैं। मेलों के अतिरिक्त भी विभिन्‍न पर्व मंदिर में समय-समय पर मनाए जाते हैं।

इन मेलों में मनुष्य व देवताओं का अद्भुत संगम होता है। मेलों में परंपरागत संस्कृति के दर्शन भी होते हैं। देवताओं के वाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ देवताओं के गूर “गूर-खेल’ या ‘देखखेल” करते हैं। गूरों के इस खेल में संगल, कटार आदि के साथ नृत्य होता है। ‘भारथा’ में देवता का गूर देवता की कथा सुनाता है। भविष्यवाणियाँ की जाती हैं ।

हिमालय में “सर’ मात्र दर्शनीय ही नहीं, पूजनीय भी हैं । हर सर वंदनीय है, जहाँ मेले लगते हैं। देवता और मनुष्य जुड़ते हैं। श्रद्धालु सोना, चाँदी, सिक्के, धूप-दीप इन झीलों में चढ़ाते हैं। न जाने कितना खजाना इन झीलों में दबा पड़ा है। ऐसी कथाएँ भी प्रचलित हैं कि इन झीलों के गर्भ में पड़ा सोना, चाँदी, भाँड़े-बर्तन समय पड़ने पर देवता की इच्छा से जरूरतमंदों को दिए जाते हैं। रिवाल्सर झील के बारे में जनश्रुति है कि लोग विवाह आदि के अवसर पर झील से प्रयोग के लिए बड़े-बड़े बर्तन ले जाया करते थे। समय बदला, लोगों की नीयत बदली। लोगों ने ये वस्तुएँ हड़प करनी आरंभ कर दीं और धीरे-धीरे झील का यह खजाना पानी के गहर में गायब हो गया। ऐसे ही झील के खजाने की बात मंडी के ही कामरू नाग झील के बारे में भी की जाती है।

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