श्री देवी अम्बिका नाऊ

औट तहसील के पनारसा से बाई ओर एक सड़क नाऊ गांव की ओर मुड़ती है जिस पर लगभग आधा घंटे के सफर के उपरांत माता अम्बिका का भव्य मंदिर अवस्थित है। जिला मुख्यालय मंडी से यह दूरी लगभग 70 कि.मी. पड़ती है। देवी के ...

By Naman

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औट तहसील के पनारसा से बाई ओर एक सड़क नाऊ गांव की ओर मुड़ती है जिस पर लगभग आधा घंटे के सफर के उपरांत माता अम्बिका का भव्य मंदिर अवस्थित है। जिला मुख्यालय मंडी से यह दूरी लगभग 70 कि.मी. पड़ती है। देवी के मूल स्थान में प्राचीन मूर्तियां आज भी विराजमान हैं। देवी अम्बिका के प्राकट्य के बारे में कथा स्थानीय बोली की “भार्था” के रूप में आज भी संकलित व प्रचलित है।

इसके अनुसार नाऊ गांव में जब माता का प्रवेश हुआ तो जहां पर वर्तमान मंदिर स्थित है, उस जगह पर शेहना नाम की एक गाय भेखले की बूटी के नीचे पूंछ के साथ बुहार (झाडू) देकर दूध की धार देती थी। पता करने पर वहां अकस्मात माता की पिण्डी प्राप्त हुई जो आज भी मंदिर में दोनों मूर्तियों के मध्य स्थित है। मंदिर की दोनों मूर्तियां यौवनावस्था व वृद्धावस्था की हैं जो कि महिषमर्दिनी ध्यान मुद्रा में है। कथा के अनुसार रांघड़ गांव के गरला कोछड़ी नामक एक खेत में फसल का कार्य करते समय कुछ स्थानीय महिलाओं को मुख दिखा। देखते ही देखते वह मुख उन महिलाओं को कई रूप व चमत्कार दिखाने लगा।

इससे वे डर गई और घर जाकर अन्य लोगों को यह वृतान्त सुनाया। उस समय वहां चार गांवों से आए पुरूष बैठे थे जिनमें जोरी गांव के शाह, पनाऊ के माडू सुआड़ी के लाहुल तथा रांघड़ के भम्भु शामिल हैं। वे चारों उक्त स्थल पर पहुंचे तो मुख भम्भु राम के पास गया जिसे उसने गोद में उठाकर अपने घर पर रख दिया। इसी दौरान एक कन्या ने देव वाणी (खेल) के माध्यम से उद्‌घोषित किया कि यहां अम्बिका माता प्रकट हुई हैं और मेरा पिण्डी प्राण नाऊ में प्रकट हुआ है। माता ने अपना स्थान नाऊ गांव में रखने की बात भी कही।

मंदिर के आगे प्रांगण में भादो मास की कृष्ण पक्ष की चौदस (डांकन चौदसी) में रात को देवी अम्बिका जी का उत्सव (होम जगराता के रूप में) आयोजित किया जाता है। इससे पूर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन माता का रांघड़ भण्डार में प्रवेश होता है। वहां भम्भु राघ संघड़ के कुल के पुरुष माता से प्रश्न कर उनकी आज्ञा अनुसार विशेष वार को मुख करली में रखते हैं और होम की रात को इसी करली में श्रृंगार कर यह मुख नाऊ मंदिर में लाया जाता है। इस दौरान स्वाडू खानदान के ज्येष्ठ भौर जगनू (मसाला) उठाकर माता को रौशनी करते हैं। अद्ध रात्रि के समय माता का मंदिर में प्रवेश होता है और पनाऊ के जगढाणी खानदान के ज्येष्ठ थौर के सदस्य द्वारा सबसे पहले जगनी प्रवेश जाग में की जाती है। अमावस्या के दिन जाग का विसर्जन किया जाता है और इसके उपरांत पनाऊ गांव में प्रतिपदा से मेला आरंभ होता है है जिसमें आस-पास के देवता भी शोभा बढ़ाते हैं।

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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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