मंडी जिला के सनोर क्षेत्र में पनारसा के समीप किगस गांव में यह मंदिर स्थित है। जिला मुख्यालय से दूरी लगभग 60 कि.मी. है और लगभग सौ मीटर पैदल चलकर देव लक्ष्मी नारायण के मंदिर में पहुंचा जा सकता है। मूल स्थान में प्राचीन मूर्तियों के अतिरिक्त एक बावड़ी भी स्थित है।
मान्यता के अनुसार किगस की एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर लगभग चार सौ वर्ष पुराना है। मंदिर में श्री देव लक्ष्मी नारायण की चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है और छोटी-छोटी अन्य कई मूर्तियां भी स्थापित है। मंदिर की लकड़ियों पर सुंदर नक्काशी की गयी है और दिवारों पर चित्रकारी भी दर्शनीय है। मंदिर के चारों ओर बान के काफी पुराने वृक्ष है और दो छोटी सरायं भी हैं।
कहा जाता है कि लगभग दो सदी पूर्व देवता को रथ पर विराजमान किया गया और उसी समय से मंडी के राजा के निमंत्रण पर देवता का शिवरात्रि में आगमन होता आ रहा है। यह भी मान्यता है कि रियासतकाल में शिवरात्रि आयोजन के दौरान एक बार देवता ने बली प्रथा बंद करने के निर्देश राजा को दिए थे और तभी राज दरबार में प्रवेश किया था।
बारिश न होने की स्थिति में देवता को भंडार से बाहर निकालते हैं और जमार्गे लगाकर कंधे पर उठाकर बारिश के लिए प्रार्थना की जाती है। देवशयनी एकादश को देवता का जन्मदिवस विधिपूर्वक मनाया जाता है। बावड़ी के पास स्नान उपरांत कुल पुरोहित के मंत्रोच्चारण से हवन कर कन्या पूजन भी इस दिन किया जाता है।
ऋषि पंचमी के दिन भी श्रद्धालु भारी संख्या में यहां देवता से आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। उस दिन विशेष बात यह रहती है कि श्रद्धालु बेल की तीन याप सुनने के उपरांत हाथ में मशाल लिए मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। लोगों के मंदिर प्रांगण में पहुंचने के उपरांत पूजा आरंभ होती है और गूर देववाणी के माध्यम से लोगों की समस्याएं भी हल करते हैं।