देव वैणी का गहरी का मूल स्थान तहसील औट के गांव बयागी में है जो मंडी जिला मुख्यालय से 62 किलोमीटर दूर है। देवता की मान्यता राजाओं के समय से है और मंडी शिवरात्रि में भी रियासतकाल से आया करते हैं।

जनश्रुति के अनुसार देवता की उत्पत्ति गाय द्वारा हुई है। एक गाय जंगल से आती थी और यहां देवता के स्थान पर पत्थर की पिंडी पर दूध देती थी और पूंछ से साफ करती थी। जब ग्वाले ने गाय को घर ले जाकर दूहना चाहा तो गाय से दूध नहीं मिला। तब ग्वाले को घर वालों ने खूब डांटा। अगले दिन परिजनों ने स्वाले का पीछा किया तो देखा कि गाय सारा दूध उस पिंडी पर डाल रही थी। तभी से उस पिंडी को देव बैणी का गहरी के नाम से जाना जाने लगा। उसके बाद जब गोबर गौशाला से निकलने लगा तो उसमें देवता का प्राचीन मोहरा मिला। उसके बाद मोहरे को रथ में चढ़ाया गया।
