Sikari Jogani temple Siraj Himanchal Pradesh

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सर्वोच्च शक्ति केंद्र Sikari यूँ तो Sikari mata का नाम प्रसिद्ध है पर Sikari Jogani का इतिहास उतना ही गूढ़ रहस्यों से ढका हुआ है इतिहास के पन्नो को कंगाले तो माता का इतिहास दुर्गा उतपति के समय से जुड़ता है । मान्यता है कि सबसे पहले महर्षि मार्कण्डेय ने इस स्थान पर आदि शक्ति की आराधना की अंत मे आदि शक्ति दिव्य प्रकाश पुंज के रूप में प्रकट हुई और 64 रूपो में विभक्त हो गयी। 

इतिहास के पन्नों से Sikari Jogani

उसके बाद पांडव जब इस स्थान पर आए तो माता ने उनको शिकार के रूप में दर्शन दिए जिस कारण सम्भवतः इस जगह का नाम शिकारी पड़ा पांडवो ने सर्वप्रथम यहाँ मन्दिर बनाया जो छत रहित था क्योंकि माता तपस्यारत है और छत के नीचे निवास नही कर सकती। हालांकि लोक मान्यता में माता की पूजा एक रूप में ही कि जाती है पर वास्तव में यह 64 देवियों का समूह है ।

64 जोगणीयो के इतिहास पर नज़र डालें तो इसमें अलग अलग स्थान पर इनका नाम अलग अलग मिलता है परंतु सबसे पहले 64 जोगणियो के नाम का जिक्र राजा विक्रमादित्य के समय मे मिलता है उसके बाद राजतरगणी ,इंद्रजाल में भी 64 जोगणियो के नाम का उल्लेख है । करसोग की प्राचीन तांत्रिक पुस्तको में इनका उल्लेख अलग अलग नामो से होता है । 

इंद्रजाल में वर्णित 64 जोगणीयो के नाम

महायोगनी,दिव्ययोगनी,सिद्धयोगनी, प्रेताक्षी, काली,कालरात्रि, डाकनी, गणेश्वरी,हुंकारी,निशाचरी, रूद्र वेताली, खरप्रि, भूत यमनी,उध्रकेशी,विरूपाक्षी, शुंकांगी, माँसभोजनी,फेत्कारी, वीर भद्राक्षी, धूम्राक्षी, कलहप्रिय,रक्ता, घोरर्कताक्षी, विरूपाक्षी,भयंकरी, चोरिका, मरिका,चंडी, वाराही, मुंड धारणी, भैरवी, चक्रनी, क्रोधा, दुर्मुखी,प्रेतवाहिनी, कंटकी, दीर्घ्लंबोष्टि,मालिनी, मंत्रयोगनी,भुनेश्वरी, कालाग्नि, मोहिनी,चक्री,कंकाली, कुण्डलाक्षी, जूही, लक्ष्मी, यमदुति, घोरा, भक्षणी, यक्षी,कोशकी, कौमारी, करलिनी, कामुकी,विशाला, धूर्जटा, विकटा, प्रेतभूषणी, यन्तर्वाहिनी,व्याग्री, कपाला, यक्षणी,लांगली, लगभग सभी मंदिरों में इनकी स्थापना की जाती है । 

वर्तमान में सराज के पुजारी यहाँ पूजा पाठ करते है परंतु हमेशा से यहाँ ऐसा नही था इस स्थान में रशवाला गांव के निवासी ही गुर लगते थे और माता की पूजा करते थे पर वर्तमान में परिस्थितिया बदल गयी है ।

प्रचलित मान्यता of Jogani

प्रचलित मान्यता यह भी रही है कि हर मनुष्य के शरीर मे जोगणी का वास होता है प्राणी जोगण मन्दिर के समीप ही उम्बली जोगणी का दिव्य स्थान है जिसे भद्राकाली माना गया है इस के संदर्भ में भी वर्णित है कि यह देवी नर बलि लेती थी जिस कारण यहाँ सदैव भय बना रहता था एक दिव्य साधु ने भद्राकाली को जमीन में उल्टा दबा दिया था जिस कारण इसे उल्टी, उम्बली और पुराणी जोगण कहा जाता है इस स्थल पर आज भी बातचीत करना निषेद्ध है ।

नरोल जान मन्दिर के कुछ दूरी पर नरोल नाम की एक बड़ी चट्टान है जो पूजनीय है इस सदर्भ में कथा प्रचलित है कि इस चट्टान पर भीम ने एक विशाल दैत्य का वध किया था जो यहाँ से स्वर्ग को सीढिया बना रहा था इस विशाल चट्टान पर आज भी उसके निशान मौजूद है 

आज भी यह सभी देवताओं का शक्ति केंद्र है जब भी कोई देवता अपने स्थान से रुष्ट होता है तो माता के पास आता है । देवताओ के नए लगने वाले गुरो को माता के चरणों मे हाजरी लगानी पड़ती है वह अपनी परीक्षा पूर्ण करनी पड़ती है।

असंख्य जीवो का घर शिकारी देवी का घना जंगल हालांकि आज सिंकुड़ता जा है फिर भी यहाँ सैंकड़ो जीवो और वनस्पतियों का घर है। कृपया जब भी इस दिव्य स्थल पर जाए तो इसे पर्यटक स्थल न समझे अपितु माता का तपस्या स्थल माने और माता की दिव्यता प्राप्त करे।

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