mul mahunag temple history in hindi

श्री माहुंनाग देवता हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में स्थापित है। परंतु मूल माहुंनाग का प्रसिद्ध मंदिर मंडी जिला के करसोग क्षेत्र में बखारी नामक स्थान पर है। बखारी करसोग से लगभग 25 किलोमीटर, मंडी से 120 किलोमीटर और शिमला से लगभग 105 किलोमीटर ...

By Naman

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श्री माहुंनाग देवता हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में स्थापित है। परंतु मूल माहुंनाग का प्रसिद्ध मंदिर मंडी जिला के करसोग क्षेत्र में बखारी नामक स्थान पर है। बखारी करसोग से लगभग 25 किलोमीटर, मंडी से 120 किलोमीटर और शिमला से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

mahunag temple history in hindi

लोक मान्यता के अनुसार माहुं नाग देवता का संबंध महाभारत कालीन दानवीर कर्ण से माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार एक बार शैंदल नामक गांव का एक गरीब किसान खेत में हल चला रहा था, तो हल की नोक एक पत्थर में टकरा गई और हल में जोर लगाने से वह पत्थर भूमि से बाहर निकल आया। जब किसान ने पत्थर पलटा तो उसके नीचे स्वर्ण चोटी वाला सर्प शांत बैठा था। लोक विश्वासानुसार ऐसा अद्भुत सर्प माया रूप होता है और उस पर कोई पर्दा फैकें तो सर्प धन दौलत में परिवर्तित हो जाता है।

उसी विचार से किसान ने सिर पर बान्धा हुआ कपड़ा सर्प के ऊपर फैंका और जब उसे पुन: हटाया गया तो कपड़े के नीचे एक दिव्य पुरू प्रकट हुआ। उस दिव्य पुरू ने कहा कि मैं महाभारत का योद्धा कर्ण हूं। ईश्वर की कृपा से मैं अब यहां नाग देवता की योनि में प्रकट हुआ हूं। तुम मेरी किसी उपयुक्त स्थान पर प्रतिष्ठा करो। मैं पूरे क्षेत्र की रक्षा करूंगा। यह कह कर वह दिव्य पुरू अंतध्र्यान हो गया। किसान ने इस समाचार से शैंदल गांव के लोगों को अवगत किया। बात आग की तरह दूर-दूर तक फैल गई और लोग उस जगह पहुंच गए।

जब लोगों में प्रतिष्ठा की बात चली तो समीपस्थ भमनाला गांव के एक व्यक्ति को नाग देवता की खेल आई और उसने कहा कि मुझे बखारी गांव में प्रतिष्ठत किया जाए। पूरे क्षेत्र के लोग सम्मानपूर्वक नाग देवता के प्रतीक को लेकर बखारी पहुंचे। यहां देव इच्छा से नाग देवता की प्रतिष्ठा की गई। उस समय अचानक आकाश में बिजली चमकी और आकाश से बिजली एक देवदार के वृक्ष पर गिरने से वृक्ष में आग लग गई। कहा जाता है कि वर्तमान में जो धुन्ना जला हैं यह आग उसी देवदार के वृक्ष की आग है। अभी भी उस धुन्ने की आग को बुझने नहीं दिया जाता।

कर्ण देवता माहुं नाग कैसे कहलाए इस संबंध में कहा जाता है कि सुकेत रियासत के राजा श्याम सेन को मुगल सम्राट औरंगजेब ने 61620 ई से 1650 ई. 08 में दिल्ली में कैद किया था। राजा सहायता के लिए सुकेत के देवी देवताओं को स्मरण करने लगे। ज्यों ही राजा ने कर्ण नाग को याद किया, तत्काल नाग देवता, माहूं (मधु-मक्खी) के रूप में राजा के सिर पर मंडराने लगे। माहुं (मधु-मक्खी) के मंडराने से राजा को किसी देवता की उपस्थिति का आभास हुआ तो वह आंखें बंद करके ध्यानावस्थित हो गया। ध्यान में कर्ण नाग देवता ने अपनी उपस्थिति को जताया। राजा ने मन में यह मन्नत की कि यदि वह काल कोठरी से मुक्त हुआ, तो सुकेत का आधा राज्य नाग देवता को समर्पित कर देंगें।

उस दिन मुगल सम्राट को शतरंज खेलने की इच्छा हुई परंतु कोई भी शतरंज का खिलाड़ी नहीं मिल पाया अत: काल कोठरियों के कैदियों से इस बारे आग्रह किया। राजा श्याम सेन शतरंज खेलने को तैयार हुआ। जैसे खेल बढऩे लगा मुगल सम्राट एक के बाद एक बाजी हारता गया और अन्त में उसे अपने दिए गए वचन के अनुपालन में राजा को कैद से मुक्त कराना पड़ा। यह सब नाग देवता की कृपा थी। तत्पश्चात राजा ने वापस लौट कर अपनी मन्नतानुसार सुकेत राज्य का आधा भाग नाग देवता को समर्पित करना चाहा। परन्तु नाग देवता ने इसे लेने से मना कर दिया और कहा कि तूने मन से हमें याद किया तो देवप्रवृत्ति के अनुसार मैं वहां उपस्थित हुआ न कि आधे राज्य के लालच से।

तथापि राजा ने कृतकृत्य होकर देवता के नाम कुछ भूमि अर्पित कर दी और बखारी देवस्थल पर पहाड़ी वास्तु शिल्प का भव्य मंदिर बनाया। जो आज भी इस गौरव गाथा का बखान करता है। जब राजा को मुगल सम्राट ने कैद किया था और नाग देवता की उपस्थिति माहुं के रूप में हुई, उस समय से कर्ण नाग का प्रसिद्ध नाम माहुं नाग हो गया। बखारी में जिस स्थान में नाग देवता का मंदिर है उस स्थान को दूर-2 के लोग माहुं नाग के नाम से जानते है।

नाग देवता की शक्ति से प्रभावित होकर सुकेत राज्य से बाहर भी कई जगह मांहु नाग की स्थापना की है। कहा जाता है कि इस प्रकार से माहुं नाग के रूप में एक सौ आठ देव स्थल स्थापित हुए। मूल माहुं नाग के रूप में तो केवल बखारी के माहुं नाग की मान्यता सर्वाधिक है। चैत्र मास की संक्रांति को सुंदरनगर में लगने वाले देव समागम में माहुं नाग मुख्य आतिथि के रूप में भाग लेने के लिए जाते हैं।

श्रावण मास के तीन प्रविष्ठे को माहुं नाग का जन्म दिन बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। प्रति वड्र्ढ ज्येष्ठ मास के 1 से 5 प्रविष्ठे तक मूल माहुं नाग का मेला लगता है, रात्रि में नाग देवता की बेल होती है। श्रद्धालु दूर-दूर से हजारों की संख्या में यहां पहुंच कर माहुं नाग के चरणों में अपनी हाजरी लगाते है। श्रद्धालुओं को ठहरने के लिए इस मंदिर में धर्मशालाएं हैं। छोटे-बडे वाहनों द्वारा सुगमता से बखारी 6माहुं नाग8 पहुंचा जा सकता है।
    

Jaidevi
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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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