Shri Mahasu devta temple, Bakhras Suket State

Mahasu devta History in Hindi  महासू देव दक्षिण पठार से होते हुए वैहल नामक जंगल में पहुंचे, वहां राक्षशी माती रूहाणी रहती थी, उस जंगल में उसकी गाय चरा करती थी। महासू देव ने उस जंगल में अपना पिंडी रूप धारण किया। माती रूहाणी ...

By Naman

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Mahasu devta History in Hindi 

महासू देव दक्षिण पठार से होते हुए वैहल नामक जंगल में पहुंचे, वहां राक्षशी माती रूहाणी रहती थी, उस जंगल में उसकी गाय चरा करती थी। महासू देव ने उस जंगल में अपना पिंडी रूप धारण किया। माती रूहाणी की गाय ने पिंडी के ऊपर स्वयं दूध देना शुरू किया। माती रूहाणी को अपने गवालों पर शक हुआ कि वो गाय से जंगल में ही दूध निकाल लेते हैं, तो गवाले माती रूहाणी को जंगल ले गए तो माती रूहाणी ने देखा कि गाय झाडिय़ों के बीच एक पत्थर पर दूध दे रही है।

अब माती रूहाणी सौमण का कुदाल कंधे पर ले आई और पिंडी पर प्रहार किया तो पिंडी से दूध और खून की धारा बहने लगी, तो माती रूहाणी अचंभित हो गई और कहने लगी कि तू कौन शक्ति है। महासू देव बालक रूप में प्रकट हुए और कहा कि मैं महासू देव हूं। माती रूहाणी ने चुनौती दी कि यदि तूं देव महासू है तो राजा सिरमौरी से युद्ध जीत कर आए, तो मानूंगी। महासू देव ने माती रूहाणी को श्राप दे दिया कि तू पत्थर की शिल्ला बन जाए और महासू देव सिरमौर के राजा से 17 दिन तक युद्ध करते रहे 18वें दिन राजा सिरमौरी नतमस्तक हो गया देवता से क्षमा याचना की।

Image of Mahasu Devta Bakhras
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देवता ने कहा कि जैसा तेरा राजसी ठाठ है वैसा मेरा भी होना चाहिए, तो राजा महासू नाम से एक रियासत बना दी, जो आज भी महासू नाम से प्रसिद्ध है। तदोपरांत जब महासू देव चले तो उन्हें करसोग घाटी नाला गढ़ी में माहूंनाग देवता मिले। माहूंनाग को पूछा कि तुम कहां थे तो माहूंनाग ने कहा कि मैं राणा सनारलू को मारने गया था, परंतु वह बहुत छली है। आप वहां मत जाओ। महासू देव ने कहा कि मैं पापियों का संहार करते ही दक्षिण पठार से चला हूं तुम मेरे साथ चलो तो मैं तुम्हारा भी वहां नाम रखूंगा। सनारली में भेखल के पेड़ पर सोना लगता था जो सुबह निकाले और शाम को और लगता था।

पहले देवता ने उसको खत्म किया उसके ऊपर अपना आसन बनाया राणा से युद्ध किया उसे परास्त किया और उसके बाद पांगणा में ठारू नामक स्थान पर 18 असुर रहते थे एक ही रात में देवता ने उनका भी संहार किया उनके अधीन एक दिव्य सिंहासन रहता था, जिसकी वो पूजा करते थे उसे राजा मदन सेन को भेंट किया। राजा मदन सेन के महल में देवता अद्धरात्रि में गए।

राजा मदन सेन ने कहा तुम कौन हो। देवता ने कहा, मैं महासू देवता हूं। राजा ने कहा यदि महासू है, तो मेरी झेड़ी में बाज बैठने चाहिए तो मैं अपनी तरह की राजसी तगमा आप को दूंगा, दूसरे दिन राजा के यहां बाज बैठ गए और राजा ने भी अपने वचन पूरा किया, यहां से देव महासू करसोग के पठार पर अपना निवास स्थान बनाया और माता शिवा की स्थापना की। इस जगह का नाम शिव देहरा पड़ा। महासू देव के पास राक्षसी कला रहती है, जो जनहित के लिए देव माहसू ने तप द्वारा प्राप्त की है। यह कला निंबल बारिस, आदी-व्याधी के लिए महासू देव प्रयोग करते हैं।

Jaidevi
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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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