हिडिंबा का मंदिर मनाली बाजार से लगभग तीन किलोमीटर ऊपर देवदार के जंगल में है। अब मंदिर तक छोटे वाहन योग्य सड़क बन गई है किंतु पुराने समय में यह स्थान जंगल होने से डरावना रहा होगा। हिडिंबा को ढूँगरी देवी कहा जाता है, अतः इस स्थान का नाम ढूँगरी है। मंदिर के भीतर एक चट्टान है जिसके नीचे देवी का स्थान माना जाता है। चट्टान अर्थात् ‘दूँग’ के कारण ही इसे ढूँगरी देवी कहा जाता है। इस चट्टान के बाहर पैगोडा शैली का कलात्मक मंदिर निर्मित है।
Hadimba temple में शिला पर महिषासुरमर्दिनी अंकित है, जबकि स्थानीय परंपरा के अनुसार लाक्षाग्रह से पांडवों के वनगमन के समय भीम का विवाह हिडिंबा से हुआ। इस पौराणिक आख्यान के साथ-साथ हिडिंबा को राजपरिवार अपनी “दादी” मानता है। लोककथा के अनुसार हिडिंबा ने ही कुल्लू के प्रथम शासक विहंगमणिपाल को यहाँ का शासन बख्शा था। अब भी कुल्लू दशहरा का आरंभ हिडिंबा के रथ के आगमन के बिना नहीं हो सकता। यहाँ मई मास में हूँगरी जातर लगती है। इस जातर में पहले मैंसा (भैंसा) काटा जाता था। जे० कैलबर्ट ने अपनी पुस्तक ‘दि सिलवर कंट्री” में भैंसा काटे जाने का एक चित्र दिया है। अतः देवी का महिषासुरमर्दिनी रूप भी जनमानस में रहा है।
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हिडिंबा (hadimba) एक ऐसी देवी है जिसका मंदिर भी है, जिसमें विधिवत् पूजा होती है और रथ भी है जो उत्सवों के समय सजता है। प्रायः उन देवताओं के निश्यप्रति पूजा वाले मंदिर नहीं हैं जिनके रथ बने हैं।
देवी के मोहरे (मास्क) में इसके राजा उद्धणपाल के समय सन् 4॥8 में बने होने का उल्लेख है, जबकि मंदिर के द्वार पर टाकरी के लेख के अनुसार मंदिर का निर्माण राजा बहादुर सिंह (546-569) ने सन् 553 में करवाया। अतः स्पष्ट है वर्तमान मंदिर से पहले भी देवी का अस्तित्व रहा है और देवी किसी न किसी रूप में, चाहे लोक देवी के रूप में ही सही, पूजी जाती रही है।
temple of Devi hadimba temple
वर्तमान मंदिर पैगोडा शैली और उत्कृष्ट काष्ठकला का एक आकर्षक उदाहरण है। मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ हैं। सीढ़ियों के ऊपर समतल जगह में मंदिर निर्मित है। पैगोडा की तीनों ढलवाँ छतों पर लकड़ी लगाई गई है। सबसे ऊपर का हिस्सा शंकु की तरह है। पैगोडा नीचे से ऊपर पतला होता गया है। गर्भगृह के बाहर प्रदक्षिणा पथ बरामदे में है। मंदिर का निर्माण पहाड़ी शैली में परंपरागत ढंग से हुआ है। देवदारों के शहतीरों के भीतर पत्थर लगाए गए हैं। दीवारों पर मिट्टी का पलस्तर और गोबर की पुताई हुई है। निचली मंजिल में गर्भगृह के बाहर बरामदा है।
दक्षिणेश्वर महादेव निरमंड की भाँति इस मंदिर के द्वार पर भी उत्कृष्ट नक्काशी हुई है। द्वार पर सिंह मुख का हैंडल लगा है। द्वार के ऊपर बारहसिंगा, भेड़ें आदि के सींग लगाए गए हैं, जिनकी वहाँ बलि दी गई होगी। दरवाजे की द्वारसाखों पर ऊपर तथा नीचे दोनों ओर नक्काशी है। द्वार के निचले भाग में एक ओर महिषासुरमर्दिनी और दूसरी ओर दुर्गा अंकित है। सामने दोनों ओर साधक खड़े हैं। गौरीशंकर, लक्ष्मीनारायण के चित्र भी काष्ठ में उकेरे गए हैं। इन पट्टिकाओं को फूल-पत्तों से आकर्षक बनाया गया है। प्रवेश-द्वार के मध्य में गणेश प्रतिमा के साथ नवग्रह, नृत्य करते हुए गंधर्व चित्रित हैं। कृष्णलीला के कुछ चित्र भी पट्टिका पर अंकित हैं।
द्वार की पट्टिकाओं पर घुड़वार और उपासक के चित्र भी अंकित हैं, जो राजा बहादुर सिंह-के हो सकते हैं। नवग्रह, गंधर्व, देव-प्रतिमाएँ तथा पुण्य पत्र आदि की नक्काशी उत्कृष्ट कोटि की है जो इस पैगोडा शैली के मंदिर की काप्ठकला, काष्ठवास्तुकला को गरिमा प्रदान करती है। मंदिर के गवाक्षों में काष्ठकला चित्रित हुई है। एक गवाक्ष में मैथुन में प्रवृत्त युगल की कृति उल्लेखनीय है।
मुख्य मंदिर के अतिरिक्त लकड़ी के तख्तों से छाया एक छोटा मंदिर भी है। इस मंदिर के ऊपर तीन त्रिशूल स्थापित हैं। यह मंदिर वर्तमान पैगोडा से पहले का है। यह मंदिर त्रिजुगी नारायण दयार की परवर्ती कला के विकास का उदाहरण है। मंदिर में पहली से तीन ज्येष्ठ तक दूँगरी जाच मनाई जाती है।
Hadimba temple history in hindi
जनश्रुति है कि एक बार सोलंगी नाग और देवी हिड़मा व्यास नदी में खेल रहे थे। उन्होंने नदी को रोककर झील बनाई जो एक स्थान से टूट गई। नाग ने हिड़मा से उसे बंद करने को कहा। जैसे ही वह उसे बंद करने लगी कि नाग ने लात मारकर झील का बाँध पूरी तरह तोड़ दिया। पानी के तीव्र प्रवाह में बहती हुई देवी हिड़मा मनाली के पास एक चट्टान से टकराकर वहीं रुक गई। यह वही चट्टान थी जो ढूँगरी में हिड़मा मंदिर के भीतर आज भी विद्यमान है। देवी जमलू तथा घेपड् की बहन मानी जाती है। तांदी राक्षस को भी इसका भाई मानते हैं।
पौराणिक कथा: ढूँगरी में हिडिंबा देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। कुल्लू में देवी का स्थान देवशिरोमणि रघुनाथ जी से कम नहीं है। कुल्लू दशहरा देवी के कुल्लू आगमन के बिना आरंभ नहीं हो सकता। कुल्लू का राजवंश इसे अपनी कुलदेवी मानता है और ‘दादी’ कहता है। एक जनश्रुति के अनुसार कुल्लू के राजाओं को यह राज्य हिडिंवा के प्रताप से ही प्राप्त हुआ है। कुल्लू के पाल वंश का प्रथम राजा विहंगमणिपाल जब कुल्लू आया तो जगतसुख के पास उसने एक बुढ़िया को पीठ पर बैठाकर नाला पार करवाया। वह बुढ़िया और कोई नहीं,हिडिंबा ही थी। बुढ़िया ने उसे दूर दृष्टि की सीमा तक राज्य वरदान में दिया।
महाभारत के आदि पर्व में हिडिंबा का प्रसंग आता है। कुटिल कणिक की कूटनीति से प्रेरित धृतराष्ट्र व दुर्योधन पांडवों को वारणावत भेज देते हैं। विदुर का इशारा पाकर वे स्वयं ही लाक्षागह को आग लगा सुरंग खोद भाग निकलते हैं।
जहाँ भीम का हिडिंबा से साक्षात्कार हुआ, वह स्थान महाभारत में वर्णित स्थल के आधार पर मनाली नहीं हो सकता। पांडव सुरंग से निकलकर एक वन से होते हुए गंगातट पर पहुँचे। गंगा नाव द्वारा पार की और दक्षिण दिशा की ओर बढ़े। घने जंगल और धकावट के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गए। भीमसेन ने उन्हें एक वट्वृक्ष के नीचे बिठाया और स्वयं जल लेने गए। जब वापस आए तो देखा, कुंती सहित सभी भाई थकान से चूर होकर सो गए हैं। भीम बहुत दुखी हुए और जागकर पहहा देने लगे।
पास ही एक शाल के वृक्ष पर हिडिंबासुर बैठा हुआ था। वह बड़ा क्रूर और पराक्रमी था। उसका शरीर काला, आँखें पीली और आकृति भयंकर थी। उल्लेखनीय है कि जहाँ हिडिंब शाल के वृक्ष पर बैठा था और पांडव वटवृक्ष के नीचे सोए थे, वह स्थान ऊँचाई वाला नहीं हो सकता। अतः यह स्थान मनाली नहीं था।
गंगा के समीप उस शाल वन में रहने वाले हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा से कहा, “बहन ! आज बहुत दिनों बाद मुझे अपना प्रिय मनुष्य मांस मिलने का सुयोग दिखता है। जीभ पर बार-बार पानी आ रहा है। आज मैं अपनी दाढ़ें इनके शरीर में डुबो दूँगा और ताजा-ताजा गरम खून पीऊँगा। तुम इन मनुष्यों को मारकर मेरे पास ले आओ। तब हम दोनों इन्हें खाएँगे और ताली बजा-बजाकर नाचेंगे।”
हिडिंबा उन्हें मारने के लिए गई किंतु भीम के सुंदर बलिष्ठ शरीर को देख अपने आने का प्रयोजन भूल बैठी और मानवी रूप धरकर भीमसेन के सामने प्रकट हो गई। वह भीम को अपना परिचय देकर उन्हें पति रूप में वरण करने की बात कहने लगी।
उधर, हिडिंब अधिक देर तक प्रतीक्षा नहीं कर सका और पांडवों की ओर चला। हिडिंबा को मानवी रूप में देख वह क्रोधित हो उठा और पांडवों की ओर बढ़ा। वीर भीम ने उसे बाहुयुद्ध में धराशायी कर दिया।
कुंती और युधिष्ठिर ने हिडिंबा का विवाह-प्रस्ताव ठुकरा दिया, किंतु हिडिंबा पीछेपीछे चलने लगी। अंततः उसे अपना लिया गया और भीम ने उसके साथ पुत्र होने तक रहने का वचन दिया।
विवाह के बाद वे विहार के लिए पहाड़ों की चोटियों पर, जंगलों में, तालाबों में, गुफाओं में, नगरों में, दिव्य भूमियों में विचरण करने लगे। यह संभव है कि हिडिंबा ने मानव-साहचर्य में अपना निवास, संस्कारों में मूल परिवर्तन के कारण बदल लिया हो।
समय आने पर उसके गर्भ से एक पुत्र हुआ जिसके विकट नेत्र, विशाल मुख, नुकीले कान, भीषण शब्द, लाल होंठ, विशाल शरीर था। माता-पिता ने उसके ‘घट” अर्थात् सिर को “उत्कच’ यानी केशहीन देख घटोत्कच नाम दिया।
इस घटना के बाद घटोत्कच का प्रसंग वन पर्व में आता है। बदरिकाश्रम जाते समय द्रौपदी के थक जाने पर भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच का स्मरण किया। भीम द्वारा घटोत्कच का हिमालय में स्मरण उसके हिमालयवासी होने का प्रमाण है। घटोत्कच ने द्रौपदी को और अन्य राक्षसों ने पांडवों को उठाकर यात्रा की।
Frequently Asked Questions
Where is Hadimba temple?
हिडिंबा देवी मंदिर मनाली, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह ढुंगरी वन में बना है और मनाली मॉल रोड से करीब 2 किलोमीट दूर है। यह मंदिर हिडिंबा देवी को समर्पित है, जो पांडव भीम की पत्नी थीं।
How old is hadimba temple?
हिडिंबा देवी मंदिर लगभग 500 साल पुराना है। इसका निर्माण 1553 ईस्वी में हुआ था। इसे कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने बनवाया था।
Why is hadimba temple famous?
हिडिंबा मंदिर अपनी अद्वितीय लकड़ी की वास्तुकला और महाभारत से जुड़े इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भीम की पत्नी हिडिंबा देवी को समर्पित है और हिमाचल प्रदेश के मनाली में घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित है। अन्य मंदिरों की तरह यहां मूर्ति नहीं, बल्कि देवी के चरणचिह्न स्थापित हैं। हर साल मई माह में हिडिंबा देवी मेला भी आयोजित किया जाता है। यह मंदिर अपनी शांति, प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक मान्यता के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।