मंडी जिला मुख्यालय से लगभग सात कि.मी. दूर रुंझ गांव में Dev Budha Bingal का प्राचीन मंदिर स्थित है जो कि सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। देवता की कोठी भौण (खुबा) तथा भण्डार रूझ में है।
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History of budha bingal in Hindi
देव बूढा बिंगल Budha Binga को आदी देव शिव का रूप माना गया है देवता की भार्या में इनके उद्भव का सुंदर निरूपण किया गया है। “स्वर्ग से चूड़ा, धरती में पने, कौल (कमल) के फूल में। जिस वक्त अन्न नहीं था, धन नहीं था, चनण नहीं था, सूरजण नहीं था। न्यहारी-घोरी पृथ्वी थी, उस समय का वास”। मान्यता के अनुसार सृष्टि की रचना के उपरांत शिव भगवान जब कैलाश पर्वत से नीचे उतरने लगे तो उन्होंने जहां-जहां पर विश्राम किया, वही स्थान दिव्य बनने लगा और उन्हीं में से एक यहां रूंझ में भी है।
Imporatance of Budha Bingal in Mandi Shivratri
शिवरात्रि के प्रमुख देवताओं में इनका स्थान माना जाता है और मेले से दो दिन पूर्व ही जिन नौ देवी-देवताओं को बुलाया जाता है उनमें यह भी शामिल हैं। राजा के बेहड़े (महल) में इनका निवास मेले के दौरान रहता है। देवता का मोहरा बहुमूल्य धातुओं का बना है और खारे (बांस की लकड़ी का टोकरा ) में चलता है। शिवरात्रि में केवल इनका निशान छड़ी, जफहरा (झंडा), सूरज पंखा, छत्तरी इत्यादि ही पहुंचते हैं। Budha Binga के वजीर का रथ भी मेले में भाग लेता है।
देव बूढा बिंगल Budha Binga के 18 बेटे माने गए हैं जो विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। देवता का मंदिर प्राचीन शैली में पत्थर व गारे से गुंबद आकार में पत्थर के एक चौकोर मंच पर निर्मित है। छोटे से इस मंदिर में भेखले के पेड़ की जड़ वर्षों से अन्य मूर्तियों के साथ रखी गयी है। शुकदेव ऋषि, बगला मुखी तथा देवता के वजीर झाथी पार व टुंडी वीर का स्थान भी यहां पर है। मंदिर में मधुमक्खियों का भी निवास है और इन्हें देव वाहन भी माना गया है। दैवीय चमत्कार से यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती, लेकिन देव नियम में चूक या गलती पर अवश्य दण्डित करती हैं, ऐसा कहा जाता है।
Fair & Festival
खजरे के बड़े पेड़ों से आच्छादित यह देव स्थल एक दिव्य अनुभूति पैदा करता है। वर्षभर में विभिन्न उत्सवों का आयोजन यहां किया जाता है। विशेष तौर पर लोहड़ी, गणेश चतुर्थी, बरसोआ, नाहुली, योजू के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहां उमडती है। बिजणी, टांडू, त्रयाम्बली, कटिंढी, द्रंगपाली, मंडी शहर सहित तुंगल क्षेत्र के लोगों के कुल देवता के रूप में इनकी मान्यता है और शिवरात्रि के अवसर पर विशेष तौर पर लोग इन्हें अपने घर बुलाकर पूजा अर्चना करते हैं।
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