देव बरनाग वणसारी

Naman Sharma Published date: March 18, 2025
dev barnag prasher

मंडी जिला की सनोर घाटी की औट तहसील के शनोड़ गांव में देव बरनाग/वणसारी का भंडार है। मंडी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर इस स्थान तक 70 किलोमीटर का सफर सड़क द्वारा तय किया जा सकता है। जबकि तीस किलो मीटर पगडंडी से सफर करना पड़ता है। रियासतकालीन इस देवता को 18 करंडी की कटवाली मिली थी। देव वस्नाग को राम-लक्ष्मण का अवतार माना जाता है जिनके गुरु वशिष्ठ व पराशर को कहा जाता है। ऋषि पराशर को देव बरनाग का दादा अथवा गुरू कहा जाता है।

कहते हैं एक बार अहुघू नामक राक्षस पराशर ऋषि की तपोस्थली में आ धमका और ऋषि को वहां से चले जाने को विवश करने लगा। उसने ऋषि पराशर के समक्ष एक शर्त रखी कि अगर झील के पानी में प्राचीन मंदिर डूब जाता है, तो ऋषि पराशर को यह स्थान छोड़कर जाना होगा। इसके साथ ही वह राक्षस झील में उतर गया। उसने झील के सभी निकासी द्वारों को भैंस के सिर और गहरे नामक घास से बंद कर दिया। जिसकी वजह से झील का जल स्तर बढने लगा। इसकी चपेट में मंदिर भी आने लगा। इतने में यह खबर अन्य देवी देवताओं को भी प्राप्त हो गई। वे सभी वहां पहुंच गए। देवताओं ने भी झील का जल स्तर कम करने का प्रयास किया।

मगर झील के पानी का बढ़ना और उसमें मंदिर का डूबना जारी रहा। कहते हैं कि उस राक्षस ने ब्रम्हा जी से वरदान ले रखा था कि एक जीव से मेरी मौत न हो। वहां उपस्थित देवी-देवता और ऋषि-मुनी उससे निपटने के लिए झील में घुस गए। मगर वे उस अकेले राक्षस को हरा नहीं पाए। अंत में विवश होकर ऋषि पराशर ने राम-लक्ष्मण के रूप देव बरनाग को आवाज लगाई। कहा जाता है कि वो आवाज डुए नामक व्यक्ति के नाम से आई थी और उसे जल्द से जल्द पराशर के हालात सुधारने को कहा गया।

वह आवाज सुनकर देव बरनागवणसारी पराशर झील की ओर रवाना हो गए। पराशर पहुंच कर देवता बरनाग ने पराशर ऋषि का धड्छ जिसमें धूप जलाया जाता है, को लेकर झील के दाहिने किनारे से अंदर चला गया। सात दिन तक झील में धुआं ही धुआं दिखाई दिया। इसके साथ ही झील का जल स्तर बढना भी बंद हो गया। मंदिर का शिखर अभी पानी में नहीं डूबा था। देव दरबाग ने राक्षस को मार कर झील के निकासी द्वार खोल दिए थे। इससे प्रसन्न होकर ऋषि पराशर ने बरनाग को वरदान दिया कि मनुष्य को किसी भी प्रकार के प्रकोप या रोगों से मुक्त कर सकते हैं। तभी तो कहा जाता है कि

राम-लक्ष्मण दो रूपों का एक रूप नाम बना वरनाम/वनसारी
तीनों लोक का सतक सारी दुनिया का न्यायकारी

देवता बरनाग को ऋषि पराशर के मंदिर में एक दिन पूजा-अर्चना और राजपाट का अधिकार वरदान स्वरूप मिला है। यह
अधिकार स्वर्य ऋषि पराशर की ओर से दिया गया है। देव बरनाग मंडी शिवरात्रि में रियासतकाल से ही शामिल होते आ रहे हैं। देव व्यवस्था चलाने के लिए नौ सदस्यीय कमेटी का किया जाता है। जिसमें कारदार की प्रमुख भूमिका रहती है।

Naman Sharma

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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