जानिए बूढ़ी नागण की पूरी कहानी

Naman

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बूढ़ी नागण का मंदिर शरेऊलसर, तहसील बंजार में स्थित है। इसका गूर श्री भाग सिंह, कारदार श्री ज्ञानचंद तथा पुजारी श्री मिलखराज है। देवी का खड़ा रथ चाँदी के छत्र से सुशोभित शिखर वाला है। इसे दो अर्गलाओं द्वारा उठाया जाता है। रथ के चारों ओर आठ मोहरे सुसज्जित हैं, जिनमें से एक मोहरा सोने का है तथा शेष चाँदी के हैं।

बूढ़ी नागण को नाग माता कहा जाता है। नागों में वयोवृद्ध होने के कारण इसे बूढ़ी नागण का नाम प्राप्त हुआ है। कहते हैं कि यह अठारह नागों की जन्मदात्री है। इन्हें गुप्त स्थान में रखकर यह इनका पालन-पोषण किया करती थी । एक बार देवी की सहेली ने इन्हें देखा तो भयभीत होकर उसने इन पर गर्म-गर्म राख फेंक दी। इससे नाग भिन्‍न-भिन्‍न दिशाओं में भाग गए। नाग माता उन्हें ढूँढ़ती हुई अनेक स्थानों पर गई। जहाँ-जहाँ नाग मिले, वहाँ-वहाँ उन्हें हार-द्वार (प्रजाक्षेत्र) प्रदान किए । बूढ़ी नागण ने शरेऊलसर की पवित्र झील के किनारे अपना वास चुना। लोगों ने वहाँ माता का छोटा-सा मंदिर बनाया. और : धियागी में देवी का भंडार बनाया, जहाँ देवी का रथ भी है। 7 वैशाख और 5 जेठ को देवी का मेला लगता है।

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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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