temples in mandi state

Naina Devi Temple Rewalsar Mandi

Naman

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naina mata rewalser

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सरकीधर नैना देवी मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है, जहाँ से ऊपर का नज़ारा अद्भुत है, साफ़ मौसम में यहाँ से हिमालय की अधिकांश पर्वतमालाएँ दिखाई देती हैं, साथ ही बहल घाटी और पीर-पिंजाल पर्वतमाला के ऊँचे बर्फ से ढके पहाड़ों का नज़ारा भी आपका दिन बना देगा। मंदिर समुद्र तल से 1830 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। ज़्यादातर समय आपको यहाँ ठंडी हवाएँ चलती हुई महसूस होंगी, यहाँ तक कि गर्मियों में भी यहाँ ठंडी हवाएँ चलती रहेंगी। मंदिर के नीचे एक गुफा है और ऐसा माना जाता है कि गुरु पद्मसंभव ने यहाँ ध्यान लगाया था, आजकल बौद्ध भिक्षु यहाँ मंत्रोच्चार करते हैं और गुफा के अंदर और आसपास बड़ी-बड़ी चट्टानों पर तिब्बती भाषा में बहुत सारी लिपि लिखी हुई है और चट्टानों को झंडों से घेरा गया है।

नैना देवी जी मंदिर: रिवाल्सर से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, नैना माता का एक मंदिर पहाड़ी की चोटी पर मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि सती की आंखें इस जगह पर गिर गईं और नैना देवी का एक मंदिर इस पवित्र स्थान पर बनाया गया था। राज्य के सभी कोनों से भक्त पूरे साल मंदिर जाते हैं। यह स्थान पाइन के पेड़ों से घिरा हुआ है और बल्ह  और सरकाघाट घाटी के मनोरम दृश्य पेश करता है।

नैना माता का एक मंदिर पहाड़ी की चोटी पर मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि सती की आंखें इस जगह पर गिर गईं और नैना देवी का एक मंदिर इस पवित्र स्थान पर बनाया गया था। राज्य के सभी कोनों से भक्त पूरे साल मंदिर जाते हैं।

History of Naina Devi Sar ki dhar rewalsar

श्री स्कन्द महापुराण में “हिमवान खण्ड” के दूसरे संवाद का वर्णन है, जिसमें ऋषि माँ शक्ति तथा श्री लोमश ऋषि के मध्य संवाद का वर्णन है, जिसमें ऋषि मां पार्वती से रिवालसर अर्थात हृदयलेश का धार्मिक महत्व जप, तप तथा दान की इस स्थान पर क्या महता है, बारे में जानते हैं। ऋषि की जिज्ञासा शांत करने के बाद माँ पार्वती ने श्री लोमश ऋषि जी को हृदयलेश के समीप “तारा” रूप में निवास करने का वरदान दिया। तथा माँ पार्वती इस स्थान पर माँ तारा के रूप में विद्यमान हुई।

एक दन्त कथा के अनुसार समीप के एक गांव की कन्या जिसका नाम तारा था, डाकू उसका पीछा करते-करते इस स्थान तक आ पंहुचे। इस स्थान पर उस कन्या ने श्रीकृष्ण भगवान को द्रोपदी की तरह उसकी रक्षा के लिए पुकारा, तब उसे श्री लोमश ऋषि जी तप में लीन दिखाई दिए। धरती के फटने से वह कन्या इस स्थान पर समा गई जो बाद में माँ उग्रतारा के रूप में प्रसिद्ध हुई।

प्राचीन काल से ही इस स्थान को देवयल अर्थात देवस्थल के नाम से जाना आता है। ज्ञात इतिहास के अनुसार इस स्थान पर मन्दिर का निर्माण 1630ई० के लगभग किया गया। इस मन्दिर का निर्माण उस कारीगर द्वारा किया गया था जिसने 1625ई० में मण्डी के राजा सूरज सेन के “दमदमा” वर्तमान में “माधोराय महल” का निर्माण किया था। राजा सूरजसेन ने उस कारीगर का दाहिना हाथ कटवा दिया था, डोहुओं के पूर्वज हरिराम ने इस मन्दिर का निर्माण शिखर शैली में करवाया था।

1905 के भूकम्प में वह भव्य मन्दिर धराशायी हो गया, तदोपरान्त यहां पर एक छोटे मन्दिर का निर्माण किया गया जो वर्तमान मन्दिर के अन्दर स्थित है। राजा अजवेर सेन (1499-1534) के द्वारा डोडू नामक ब्राह्मण को आस पड़ोस के गांवों का शासन देकर पूजा पाठ हेतू अधिकृत किया। मण्डी के राजा विजय सेन (1852-1902) की सन् 1894 के मध्य आंखों की रोशनी माती रही, बहुत ईलाज करवाने पर भी आंखों की रोशनी नहीं लौटी। माँ द्वारा स्वप्न में राजा को इस स्थान पर आकर आंखें चढ़ाने का दृष्टान्त मिला।

राजा द्वारा आंखें माँ को भेंट करने पर आंखों की रोशनी लौट आई। तब राजा ने राजाज्ञा द्वारा माँ तारा का नाम “नैणा माता” रखा। तब से लेकर अब तक आदिष्शक्ति को “नैणा माता” के रूप जाना जाता है। हिमाचल के कोने-कोने से लोग यहां आकर अपनी मन्चते पूरी करते हैं। तथा डोहू ब्राह्मण यहां प्रतिदिन पूजा पाठ का कार्य करते हैं।

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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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