माँ भराड़ी भद्रकाली जी बैहना का इतिहास

माँ भराड़ी भद्रकाली जी को वर्षा कराने, संतान प्राप्ति, बीमारियों से मुक्ति, और काले जादू से बचाव के लिए पूजा जाता है। भगवती को माता काली का रूप माना जाता है। इतिहास 765 ईस्वी में राजा वीर सेन बंगाल से सुकेत आए। उनके साथ ...

By Naman

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माँ भराड़ी भद्रकाली जी को वर्षा कराने, संतान प्राप्ति, बीमारियों से मुक्ति, और काले जादू से बचाव के लिए पूजा जाता है। भगवती को माता काली का रूप माना जाता है।

इतिहास

765 ईस्वी में राजा वीर सेन बंगाल से सुकेत आए। उनके साथ माँ भराड़ी भद्रकाली जी भी आईं। उन्होंने सुकेत ( सुंदरनगर ) में भराड़ी नामक स्थान पर माता की स्थापना की। इसी कारण माता का नाम भराड़ी भद्रकाली पड़ा।

image of devi bhardi ka rath
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दंत कथा

एक कथा के अनुसार, माता का एक भक्त था जिसका नाम टचपची था। उसका घर कभाली नामक स्थान में था। एक बार वह माता का निशान भराड़ी से अपने घर ले आया और रोज उसकी पूजा करने लगा।

एक दिन जब वह खेतों में हल चला रहा था, तब वहाँ माता की एक शिला रूपी पिंडी प्रकट हुई, जिसमें पहले से ही माता का मुख था। उस पिंडी का मुख उत्तर दिशा की ओर था। गाँववालों ने उस पिंडी का मुख पूर्व दिशा की ओर करने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं घूमा। इसके बाद देवी ने एक गुर के माध्यम से अपने बारे में बताया। देवी के आदेश के अनुसार, गाँववालों ने वहाँ एक मंदिर बनाया और माँ की पूजा-अर्चना शुरू की।

विशेष मान्यताएँ

आज भी यदि बारिश नहीं होती है, तो लोग माता के मंदिर में जाकर वर्षा की कामना करते हैं। जिनके यहाँ संतान नहीं होती, वे संतान प्राप्ति के लिए माता से प्रार्थना करते हैं।

माँ का मूल स्थान भराड़ी सुकेत ( सुंदरनगर ) में है। बैहना में देहरा ( मंदिर ) कभाली में और भंडार बैहना में है।

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Naman

not a professional historian or writer, but I actively read books, news, and magazines to enhance my article writing skills

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