Mangru Mahadev temple Chhatri Siraj complete story

देवता श्री मगरु महोदव का मंदिर छतरी में है जो कि जिला मुख्यालय से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। Mangru Mahadev का ऐतिहासिक प्राचीन स्थल मगरु गढ़ है। जनश्रुति के अनुसार मगरू महादेव का मुख्य मुखौटा शवान नामक गांव में खेत से प्राप्त हुआ था, जबकि शिवलिंग की उत्पत्ति चौरा नामक गांव से हुई।

Mangru Mahadev का सम्पूर्ण मंदिर एक ही देवदार के पेड़ से बना है तथा एक ही मिस्त्री द्वारा बनाया गया है। बजुर्ग बताते हैं कि इस मंदिर को निर्मित करने में स्वयं देवता ने कारीगर की सहायता की है। उन्होंने कारीगर को स्वप्न में बताया कि आप तख्ते को तैयार करके रात्रि के समय उन तख्तों पर रेखा चित्र अंकित करें। कारीगर ने ऐसा ही किया। इस तरह मंदिर में सम्पूर्ण महाभारत रेखांकित है तथा अन्य कलाकृत्तियां भी अंकित हैं।

Mangru Mahadev के मुख्य मेले रियासत काल से मंडी में शिवरात्रि मेला, संक्राति मेला छतरी, लवी मेला छतरी, प्रेहता, दोनों नवरात्रों को अंतिम दिन झाला मेला सम्मिलित है। मंडी जिला मुख्यालय से लगभग सात कि.मी. दूर रुंझ गांव में देवता का प्राचीन मंदिर स्थित है जो कि सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। देवता की कोठी भौण (खुबा) तथा भण्डार रूझ में है।

magru mahadev ka rath
Mangru Mahadev mandir Siraj ka shobla rath

देव बूढा बिंगल को आदी देव शिव का रूप माना गया है देवता की भार्या में इनके उद्भव का सुंदर निरूपण किया गया है। “स्वर्ग से चूड़ा, धरती में पने, कौल (कमल) के फूल में। जिस वक्त अन्न नहीं था, धन नहीं था, चनण नहीं था, सूरजण नहीं था। न्यहारी-घोरी पृथ्वी थी, उस समय का वास”।

History of Mangru mahadev in Hindi

मान्यता के अनुसार सृष्टि की रचना के उपरांत शिव भगवान जब कैलाश पर्वत से नीचे उतरने लगे तो उन्होंने जहां-जहां पर विश्राम किया, वही स्थान दिव्य बनने लगा और उन्हीं में से एक यहां रूंझ में भी है। शिवरात्रि के प्रमुख देवताओं में इनका स्थान माना जाता है और मेले से दो दिन पूर्व ही जिन नौ देवी-देवताओं को बुलाया जाता है उनमें यह भी शामिल हैं। राजा के बेहड़े (महल) में इनका निवास मेले के दौरान रहता है। देवता का मोहरा बहुमूल्य धातुओं का बना है और खारे (बांस की लकड़ी का टोकरा ) में चलता है। शिवरात्रि में केवल इनका निशान छड़ी, जफहरा (झंडा), सूरज पंखा, छत्तरी इत्यादि ही पहुंचते हैं।

देवता के वजीर का रथ भी मेले में भाग लेता है। देव बूढा बिंगल के 18 बेटे माने गए हैं जो विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। देवता का मंदिर प्राचीन शैली में पत्थर व गारे से गुंबद आकार में पत्थर के एक चौकोर मंच पर निर्मित है। छोटे से इस मंदिर में भेखले के पेड़ की जड़ वर्षों से अन्य मूर्तियों के साथ रखी गयी है।

शुकदेव ऋषि, बगला मुखी तथा देवता के वजीर झाथी पार व टुंडी वीर का स्थान भी यहां पर है। मंदिर में मधुमक्खियों का भी निवास है और इन्हें देव वाहन भी माना गया है। दैवीय चमत्कार से यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती, लेकिन देव नियम में चूक या गलती पर अवश्य दण्डित करती हैं, ऐसा कहा जाता है।

खजरे के बड़े पेड़ों से आच्छादित यह देव स्थल एक दिव्य अनुभूति पैदा करता है। वर्षभर में विभिन्न उत्सवों का आयोजन यहां किया जाता है। विशेष तौर पर लोहड़ी, गणेश चतुर्थी, बरसोआ, नाहुली, योजू के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहां उमडती है। बिजणी, टांडू, त्रयाम्बली, कटिंढी, द्रंगपाली, मंडी शहर सहित तुंगल क्षेत्र के लोगों के कुल देवता के रूप में इनकी मान्यता है और शिवरात्रि के अवसर पर विशेष तौर पर लोग इन्हें अपने घर बुलाकर पूजा अर्चना करते हैं।

मगरू महादेव किसी को भी निराश नहीं करते और मंदिर झोली भर देते हैं मगरू महादेव का मंदिर प्राचीन काष्ठ कला का एक अद्धभुत नमूना है मंदिर में दीवारों पर लकड़ी की नकाशी, इसकी खूबसूरती में चार चांद लगे हुए मंदिर में स्थित है, छतरी मेले में से सबसे प्रसिद्ध हेल जो अगस्त महीने में दिनांक 15 से शुरू हो के 20 तक आता है हेल यह मेला देखने वाले दूर-दूर से आते हैं, मेले का मुख्य आकर्षण लोक गायक होते हैं हेल जो मेले की शोभा को और आरंभ है

इस मेले में इस मंदिर में और भी महल होते हैं हेल जैसे छतरी लबी, छतरी थाहिरशूल मंदिर में हर महीने (साजा) में लोग आते हैं और अपने दुख दर्द के साथ जयकार करते हैं हर साल मगरू महादेव की यात्रा करते हैं सभी पुरातात्विक गांवों की यात्रा करते हैं हेल ये गांव मुख्यत-लस्सी , रुछाड़, रूमानी, लहरी, टिपरा, मेहरी, सेरी, चपलंदी, बैठवा, शिंगल, चौंरा और काकड़ा इसके अलावा और भी बहुत से और गांव जय हो हर साल मगरू महादेव, साकेतिक गावों की यात्रा,

जय हो ये गावों की यात्रा – लस्सी, रुछाड़, रूमानी, लहरी, टिपरा, मेहरी, सेरी, चपलंदी, बैठवा, शिंगल, चौंरा और काकड़ा इसके अलावा और भी बहुत से गाँव जय हर साल मगरू महादेव सभी आकर्षक गांवों की यात्रा करते हैं हेल इन गांवों में मनाता-लस्सी, रुछाड़, रूमानी, लहरी, टिपरा, मेहरी, सेरी, चपलंदी, बैठवा, शिंगल, चौंरा काकड़ा हर साल मगरू महादेव सभी आकर्षक गांवों की यात्रा करते हैं हेल

Importance of Magru mahadev in shivratri

देवता श्री मगरु महोदव का मंदिर छतरी में है जो कि जिला मुख्यालय से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देवता का ऐतिहासिक प्राचीन स्थल मगर गढ़ है। जनश्रुति के अनुसार मगरू महादेव का मुख्य मुखौटा शवान नामक गांव में खेत से प्राप्त हुआ था, जबकि शिवलिंग की उत्पत्ति चौरा नामक गांव से हुई। मगरू महादेव का सम्पूर्ण मंदिर एक ही देवदार के पेड़ से बना है तथा एक ही मिस्त्री द्वारा बनाया गया है। बजुर्ग बताते हैं कि इस मंदिर को निर्मित करने में स्वयं देवता ने कारीगर की सहायता की है।

उन्होंने कारीगर को स्वप्न में बताया कि आप तख्ते को तैयार करके रात्रि के समय उन तख्तों पर रेखा चित्र अंकित करें। कारीगर ने ऐसा ही किया। इस तरह मंदिर में सम्पूर्ण महाभारत रेखांकित है तथा अन्य कलाकृत्तियां भी अंकित हैं। देवता के मुख्य मेले रियासत काल से मंडी में शिवरात्रि मेला, संक्राति मेला छतरी, लवी मेला छतरी, प्रेहता, दोनों नवरात्रों को अंतिम दिन झाला मेला सम्मिलित है।

How to reach Mangru Mahadev

मगरू महादेव का मंदिर एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है, मगरू महादेव दीन दुखियों के पालनहार, मगरू महादेव का मंदिर करसोग से 50, जंजैहली से 30, आनी से 30, तथा जिला मंडी से 100, शिमला से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दो छोटी नदियों के बीच छतरी नाम के स्थान पर स्थित है। यह एक खूबसूरत जगह है,पहाड़ों से सजी हुई। दूर-दूर से यहां मंहत मित्र और पूजा देखने आते हैं।

Conclusion

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